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हिन्दुस्तान की सरज़मीन सूफ़ी और संतो की सरज़मीन है, जिनके कदमो ने हिन्दुस्तान की ख़ाक को महका रखा है, जिससे भारत हासिल-ऐ-रुतबा है | उसमे यक़ीनन सूफ़ी संतो का एक खास मक़ाम है | सूफ़ियो और संतो का अपना एक अलग ही तसव्वुफ़ होता है, जो अपने अंदर सभी धर्मो के मूल सिद्धांतो को समेटे रखते है | यह एक ऐसा आध्यात्मिक केन्द्र होता है, जहाँ धर्म के ऊपरी आवरण और कट्टरता की दीवारे ज़मीदोज़ हो जाती है | इसी ज़मीन के एक हिस्से मे एक चिराग रोशन हैं, जो पूरी दुनिया मे रोशनी फैला रहा हैं | मालवा अंचल के सूफ़ी संत कामिल दरवेश हज़रत अज़ीमुश्शान रोशन ज़मीर सोनगिरी सरकार हैं | आपकी नज़रो मे वो तासीर है, जो मुक्कदर के बंद दरीचों को भी खोल देता है | नज़र-ऐ-तसव्वुफ़ की जानिब से कुछ अछूते गिरे जो सूफियो और बुजुर्गो का फरमान और खुदा की सच्ची इबादत है | वह लम्हा जिन्दगी भर की इबादत से भी प्यारा है | जो एक इंसान ने दुसरे इन्सां की ख़िदमत में गुज़ारा हैं || अज़ीम हस्ती हज़रत बाबा साहब के रूप मे हमे एक कामिल दरवेश और खिदमतगार मिला है, जिन्होने सोनगिरी जेसी छोटे मक़ाम को ख़ास बना दिया है | जहाँ हमेशा ग़रीबो, बेकसों और ग़मज़दा लोगों का हुज़ूम लगा रहता है | बाबा साहब के दरबार मे किसी भी कौम का बंधन नही है, यहाँ हर कौम के लोग अपनी मुरादो को लेकर आते है और फैज़ पाते है | तमाम ज़ायरीन अपनी तकलीफो को बाबा साहब के सामने रखते है और बाबा साहब अपनी निगाहे करम से तमाम ज़ायरीनों की तकलीफो को ख़त्म फरमा देते है | सोनगिरी फ़तेहगढ़ के उस मख़सूस मक़ाम पर जहाँ बाबा साहब तशरीफ़ फरमा है, वहां रोज़ाना सिर्फ़ मध्यप्रदेश से ही नहीं बल्कि गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, छतीसगढ़ कहा जाये तो हिंदुस्तान के हर सूबे से लोग आपकी ज़ियारत के लिए आते है और फैज़ पाते है |
 
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